
साफ़ और सीधी बात कहने वाले, जोश मलीहाबादी ने अपनी आत्मकथा उतनी ही साफ़गोई से बयां की है जितने वे खुद थे। 1898 में अविभाजित भारत में मलीहाबाद के यूनाइटिड प्रॉविन्स में एक साहित्यिक परिवार में उनका जन्म हुआ और नाम रखा गया, शब्बीर हसन खान। जब उन्होंने शायरी करनी शुरू की तो अपना नाम जोश मलीहाबादी रख लिया। जोशीले तो वे थे ही और सोच भी शुरू से ही सत्ता-विरोधी थी। ‘हुस्न और इंकलाब’ नज़्म के बाद उन्हें शायर-ए-इंकलाब' कहा जाने लगा। 1925 में उस्मानिया विश्वविद्यालय में जब वे काम करते थे, तो उन्होंने हैदराबाद के निज़ाम के खिलाफ़ एक नज़्म कही जिसके चलते उन्हें हैदराबाद छोड़ना पड़ा और उन्होंने कलीम नामक पत्रिका शुरू की जिसमें अंग्रेजों के खिलाफ़ लिखते थे।
विभाजन के बाद जोश कुछ समय तक भारत में रहे। 1954 में उन्हें भारत सरकार ने पद्मभूषण से सम्मानित किया। लेकिन उर्दू ज़बान के कट्टर समर्थक जोश मलीहाबादी ने महसूस किया कि भारत में उर्दू ज़बान का पहले जैसा दर्जा नहीं रहेगा और इसलिए 1958 में वे पाकिस्तान जा बसे और आखिर तक वहीं रहे। 1982 में 88 साल की उम्र में उनका निधन हुआ।
जोश मलीहाबादी की ज़िन्दगी जितनी विवादग्रस्त थी, उतनी ही उनकी यह आत्मकथा चर्चित रही। आज भी जोश मलीहाबादी का नाम ऊँचे दर्जे के शायरों में शुमार है और उनकी नज़्में और शेर बहुत लोकप्रिय हैं। यही कारण है कि उनकी आत्मकथा को आज भी पाठक पढ़ना चाहते हैं।
Book Details
Transliteration: Yaadon Ki Baraat | यादों की बरात
Author: Josh Malihabadi | जोश मलीहाबादी
Language: Hindi
Pages: 154
Format: Paperback