
"निर्मला का प्रेमचन्द के उपन्यासों की कड़ी में महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसकी कथा के केन्द्र में निर्मला है, जिसके चारों ओर कथा-भवन का निर्माण करते हुए असम्बद्ध प्रसंगों का पूर्णत: बहिष्कार किया गया है। इससे यह उपन्यास सेवासदन से भी अधिक सुग्रंथित एवं सुसंगठित बन गया है। इसे प्रेमचन्द का प्रथम ‘यथार्थवादी’ तथा हिन्दी का प्रथम ‘मनोवैज्ञानिक उपन्यास’ कहा जा सकता है। निर्मला का एक वैशिष्ट्य यह भी है कि इसमें ‘प्रचारक प्रेमचन्द’ के लोप ने इसे न केवल कलात्मक बना दिया है, बल्कि प्रेमचन्द के शिल्प का एक विकास-चिह्न भी बन गया है।" — डॉ. कमल किशोर गोयनका, प्रेमचन्द के उपन्यासों का शिल्प-विधान।
About the Book
महिला-केन्द्रित साहित्य के इतिहास में इस उपन्यास का विशेष स्थान है। इस उपन्यास की मुख्य पात्र 15 वर्षीय सुन्दर और सुशील लड़की है। निर्मला नाम की लड़की का विवाह एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति से कर दिया जाता है जिसके पूर्व पत्नी से तीन बेटे हैं...