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प्रेमचन्द की इन नारी-प्रधान कहानियों में स्त्री के दो उज्ज्वल भावों का निरूपण हुआ है।
‘माँ’ कहानी में प्रेमचन्द ने ममता और बुद्धि का द्वन्द्व चित्रित किया है, जिसमें जीत ममता की ही होती है।
‘घासवाली’ एक ऐसी महिला की कहानी है जो अपने आत्मसम्मान के लिए गरीबी से जूझती है और चैनसिंह जैसे भंवरे को भी सही राह दिखाती है।
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